किस्मत - लेखनी प्रतियोगिता -30-Jun-2022
बड़ी छोटी होती है हाथों की किस्मत की लकीर
कर्म से विमुक्त होकर मानव को सदा मिलती पीर।
जीवन की है लंबी डगर, रहो ना किस्मत के सहारे
दूर तक न चल सके, जो कठिन परिश्रम से हारे।
बिन उद्यम खुले ना कभी किस्मत के द्वार का ताला
आलस्य की चाबी से खोले, उसे निराश कर डाला।
किस्मत गिरगिट समान एक पल में बदल देती है रंग
कभी खुशी, कभी गमों का भंडार लाती अपने संग।
किस्मत के सहारे बैठकर मत देखो सपने अनेक
स्वप्न निद्रा में रहोगे बिन प्रयास पूरे ना होंगे एक।
किस्मत की लकीरें कैसे किसी का भविष्य बताएँ
जो कभी हाथों में अपना अस्तित्व बना ना पाए।
बैठे-बैठे कभी ना मिल सकेगी ऐ मानव तुझे सफलता
मनोयोग व लगन से कार्य करें उसका जीवन फलता।
किस्मत के करतब मानव को बना देते हैं जमूरा
मेहनत संग उचित मार्ग पर चयन कर लक्ष्य हो पूरा।
किस्मत मोहक सुनहरे सपने दिखाकर कभी भी छले
भरोसे रहे यदि इसके, मानव जीवन में उसे धोखे मिले।
कर्मठ आदमी बैठे न कभी असफलता को मुकद्दर मान
कँटीली पगडंडी पर चलकर भी प्राप्त करते हैं शान।
भूल न मानव किस्मत हमारा जीवन ना सजाती है
कर्तव्य का पालन कर दुनिया स्व किस्मत बनाती है।
कर्म ही मंदिर, कर्म ही सदा पूजनीय कहलाता है
किस्मत की पूजा करे जो मंजिल कभी ना पाया है।
डॉ. अर्पिता अग्रवाल
Shrishti pandey
01-Jul-2022 09:12 PM
Very nice
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Punam verma
01-Jul-2022 06:40 PM
Very nice
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Zakirhusain Abbas Chougule
01-Jul-2022 02:47 PM
वाह बहुत खूब
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